मैंने नौवीं कक्षा में था जब मैंने यह कविता लिखी थी । यह आज भी मेरे मन में गूंजती रहती है ।
सावन में गा रही
एक रंग बिरंगी मैना ।
उसका मधुर संगीत सुन
चमक उठी मेरी नैना ॥
प्रकृति का अनमोल नजारा
चारो और है हरियाली ।
चहुँ ओर सुनहरे खिले फूल
मन में छाई खुशहाली ॥
बच्चे भी उमंग भरे
झूल रहे सावन के झूले ।
इन्द्रधनुष गगन में आकर
हंसी ठिठोली कर न भूले ॥
सावन
सावन में गा रही
एक रंग बिरंगी मैना ।
उसका मधुर संगीत सुन
चमक उठी मेरी नैना ॥
फल फूल लगे तरु मुस्कुराए
हर पल सावन के गीत गाए ।
नील कण्ठ भी नाच दिखाए
सम्पूर्ण जगत खुशियाँ मनाये ॥
चारो और है हरियाली ।
चहुँ ओर सुनहरे खिले फूल
मन में छाई खुशहाली ॥
स्वच्छ जल भंडार लिए
नदियाँ कल कल बह रही ।
कभी निर्झर बन गिरी बेग से
अब शरमाई सी लग रही ॥
बच्चे भी उमंग भरे
झूल रहे सावन के झूले ।
इन्द्रधनुष गगन में आकर
हंसी ठिठोली कर न भूले ॥
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